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23 Feb 2020 · 1 min read

"सफर की शाम हो गई "

देखते देखते, सफर की शाम हो गई
देख ये फिर से, तेरे ही, नाम हो गई

कोशिश तो बहुत की,तुझे भुलाने की
तेरी यादें कमबख़्त, सरेआम हो गई

तू लौट आएगा,एकदिन,मुझे यकीं है
इश्क़ में, तेरे नाम से, बदनाम हो गई

कसमें तो, तूने भी खाई थी, संग मेरे
कैसे, निभाने से पहले, तमाम हो गई

खड़े है बीच राह, हम इंतज़ार में तेरे
चाहत नहीं मेरी, ये इंतकाम हो गई

रेखा कापसे(मांडवे)
होशंगाबाद, मप्र
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित
21/02/2020 11:58pm

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