Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
20 Feb 2020 · 1 min read

तुमने ही छुपाए थे... क्या बाबा

तुमने ही छुपाए थे… क्या बाबा
मेरे नन्ही हंथेलियो में खेलती रंग बिरंगी तितली को
जाने कहां खो गई है,
जाने किस आंगन जाकर सो गई
रहती थी वो मेरे गांव में
उड़ती थी पहले कभी
मेरे पलकों के छांव में
सतरंगी सपनों की तरह
रहती थी भीतर ही मेरे अपनों की तरह
कई बरस बीते… न हथेलियों पे तितली बैठी
न आंखो में उसके सपने तैरी…
तुमने ही चुराए थे क्या… बाबा
मेरे पैरों के नीचे बिछे कोमल कोमल घासों को
बिखरी रहती थी जिस पे ओस… मोती बन के
और फटी मेरी ऎडियों को और फाड़ देती थी
कितनी ही आवाजें रोकती थी मुझे
बेटियों को यूं नंगे पैर धरती को रौंदते हुए
नहीं चलना चाहिए… नहीं चलना चाहिए…
आहिस्ते और धीमे कदमों से चलो
पराए घर जाना है, अपना घर बसाना है
वो तुम ही तो नही बाबा…
जिसने घास और मेरे नन्हें पैरों के बीच
दलाल को ला खड़ा किया
उसकी दलाली ने छीन लिया सखा बचपन का
जिसे रौंद अती थी गुस्से में और
खुश होने पे सिमट जाती थी उसके नर्म बांहों में
अब फटते नहीं पैर
अब बैठती नहीं तितलियां मेरे हाथों पे
~ सिद्धार्थ

Loading...