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19 Feb 2020 · 3 min read

समीक्षा- कवि केदारनाथ शुक्ल

आदरणीय कविवर केदारनाथ शुक्ला कि रचना धर्मिता अमर है। एवं सराहनीय है । विश्व को रंगमंच मानकर और उसमें पात्रों को कलाकार मानकर शुक्ल जी ने कल्पना की है वह अत्यंत अद्भुत है। उदाहरण के लिए
लगता हमें हैं बिश्व सारा रंगमंच एक,
नियत नटी है और मन एक नट है।
मोह और माया के ही परदे पड़े हुए हैं,
दृश्य में ही छल छंद झूठ है कपट है ।
राष्ट्रप्रेम में कवि कहते हैं
देह यदि आये काम आए बस देश के ही,
इसी त्याग पूर्ण अभिलाष को प्रणाम है ।
इस प्रकार सैनिकों को अभूतपूर्व श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
अर्थ ही अनर्थ बन जाता है कहीं पे व्यर्थ ,
बंधन अनेक मीत होते शब्द जाल के।
कहने का का अर्थ यह है कि कहीं पर उचित कहन का भी अनुचित अर्थ निकल आता है और वह समय अनुसार व्यर्थ साबित होता है ।इसलिए बोलते समय मन की तराजू पर तौल मोल के बोलना चाहिए। ताकि आपके वाक्य सार्थक हो।
अपनी द्वितीय कविता में कवि कहता है,
आग को आग कहना जहां जुर्म है
दाग को दाग कहना जहां जुर्म है
अर्थात सत्य को सत्य कहना जहां जुर्म है वहां सत्य को भी असत्य की तरह परिभाषित किया जाए ।
अर्थात असत्य को ही महिमामंडित किया जाए,
तो कवि पूछते हैं
1 ओ सपेरे बताओ तुम्हें क्या कहें, नाग को नाग कहना जहां जुर्म है ।इस प्रकार कहते हैं कि जो असत्य को पूर्णतया आवरण मिल जाए वही ठीक है ,असत्य और कटु वाक्य का अर्थ है कि व्याकरण में कहीं त्रुटि है। तीसरे गीत में कवि लिखता है,
विधि के आलेखों पर यदि जीवन अंकित होता।
तो इस जग में कर्मों का सम्मान नहीं होता। कवि ने शिल्प के माध्यम से सुंदर गीत लिखा है और विधि के विधान को वर्णित किया है। चौथी गीत में कवि कहता है ,
अगर देश में राजनीति के ठेकेदार नहीं होते।
अपने बीच पले छुप-छुपकर कुछ गद्दार नहीं होते ।
अर्थात कवि का मंतव्य राजनीति के उन सरदारों पर है जो अपनी करनी और कथनी में अंतर रखकर राजनीति का ठेका लेकर राजनीत को चलाते हैं । उनका अर्थ राजयोग नहीं स्वार्थ होता है राष्ट्रप्रेम नहीं राष्ट्रद्रोह होता है।
पाचवी कविता में
क्षमता हमारी देख लोग चकराते क्योंकि ,
शेष हम ढूंढ लिया करते अशेष में।
प्राचीन गौरव गाथा का वर्णन करते हुए कहता है कि , हम उनके वंशज है जिन्होंने शून्य का आविष्कार किया है एवं विश्व में अपना लोहा मनवाया है ।कवि कहता है नेता अभिनेता या कि विश्व के विजेता बन, गर्व में भले ही नित्य खूब ही तने रहो लोक में प्रसिद्ध मिल जाए इस हेतु मित्र। दूध के धुले बनो की कीच में सने रहो ।सहन करते हुए उन राजनीतिक ठेकेदारों को कहता है या की अति प्रसिद्ध हो जाओ और अपने को नितांत सुध आत्मा की तरह प्रदर्शित करो ,परंतु काजल की कोठरी में दाग लग ही जाता है। अर्थात कीचड़ में सने रहते हैं ।
कवि केदारनाथ शुक्ला अत्यंत लोकप्रिय व्यंग कार हैं उन्होंने
अपनी लेखनी से बहुत सुंदर व्यंग रचा है अतः व साधुवाद के पात्र हैं और आशा करते हैं वे भविष्य में भी इसी प्रकार लेखनी के धनी बने रहेंगे। धन्यवाद।

डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम”

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