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17 Feb 2020 · 1 min read

ढल रहा हूँ मैं!

वक़्त के साथ साथ ढल रहा हूँ मैं!
बस ज़रा ज़रा सा बदल रहा हूँ मैं!

तन्हा शहर के सूने सूने गलियारे में!
बस ख्वाहिशे लेकर चल रहा हूँ मैं!

निकला हूँ रूठे दिलो को मनाने को!
दिल पर ये बोझ लिये चल रहा हूँ मैं!

एक शमा की तरह हैं ये वज़ूद मेरा!
बस हौले हौले से पिघल रहा हूँ मैं!

गम नहीं जो शमा सा है वज़ूद मेरा!
रोशनी के लिये ही तो जल रहा हूँ मैं!

कल मिलेगा सहर में ‘अनूप’ तुम को!
अभी तो शब की तरह ढल रहा हूँ मैं!
?-AnoopS©
08 JAN 2020

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