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16 Feb 2020 · 1 min read

सुख की छाया

दुख की सीमा पार
छन रही सुख की छाया
किंतु मैं अब तक
दुख की सीमा छू नहीं पाया।

दुर्दिन की कलियां अब तक के
फूल नहीं बन पाई हैं
आशाओं की अमराई में
चिंताएं बौराई हैं
जब भी मैंने कोई बसंती
स्वप्न सजाया
डाली-डाली पतझड़ का
मौसम गदराया।
दुख की सीमा पार
छन रही सुख की छाया
किंतु मैं अब तक
दुख की सीमा छू नहीं पाया।

नीलगगन पर बरखा रानी
श्यामल चुनरी ओढ़ सजी
थिरके इंद्रधनुष सतरंगी
नभ पर मेघ-मृदंग बजी
प्यास जगी एक अनबुझ सी
सावन नहीं आया
जाने कैसे नैनों का
पनघट भर आया।
दुख की सीमा पार
छन रही सुख की छाया
किंतु मैं अब तक
दुख की सीमा छू नहीं पाया।

Language: Hindi
Tag: गीत
4 Likes · 621 Views
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