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12 Feb 2020 · 1 min read

कीर्ति छंद

विधा :- कीर्ति छन्द
दिनांक :- ७/२/२०२०
दिन :- शुक्रवार

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कीर्ति छंद
विषय – ” नेता ”
दशाक्षर वर्ण बृत्त

मात्रिक विन्यास
सगण सगण सगण गुरु
I I S I I S I I S S
मापनी 112. 112. 112. 2

मत देकर हम जलते है।
मत पाकर वो छलते है।।
ठगते हमको इठलाते।
कर कर्म बुरा इतराते।।

करते धन की यह चोरी।
धन से भरते यह बोरी।।
मत पाकर चोर लुटेरे।
बन भ्रष फिरें बहुतेरे।।

इनसे यह राष्ट्र दुखी है।
अब कौन यहाँ सुखी है।।
पद लेकर ये मदमाते।
कर पाप सदा हरसाते।।

यह मानव है बहुरंगी।
अरु आदत है नवरंगी।।
जन देखन है कब आते।
मतदान सदा यह गाते।।

इनसे अब राष्ट्र बचा लो।
विपदा मिलके सब टालो।।
अब भी इनको पहचानो।
इनके उर क्या सब जानो।।

मैं {पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन ‘} घोषणा करता हूँ कि मेरे द्वारा उपरोक्त प्रेषित रचना मौलिक , स्वरचित, अप्रकाशित और अप्रेषित है ।
【✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’】

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