Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 Feb 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

शहर आया तो गाँव बुलाने लगा
बुजुर्गों की बातें याद दिलाने लगा

अब सबके सब समझदार हो गये
सबको यूँ ही अकेलापन खाने लगा

छोटी-छोटी बातों पे रूठने लगे हैं
खुद की गल्ती ग़ैरों की बताने लगा

लहू सस्ता हो गया चीजों के सामने
आदमी अपनों से पैसा कमाने लगा

जज़्बात दबे के दबे रह गये जहन में
अपनों को खुद ही ग़ैर बताने लगा

अब चौपालें बेवज़ह ओझल हो गयीं
सुबहो-शाम डर को डर सताने लगा

किसको कहें अपना ‘निश्छल’ यहाँ
आस्तीनों में सांप नज़र आने लगा

अनिल कुमार निश्छल

Loading...