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23 Jan 2020 · 1 min read

बेचैन कागज

दर्द मेरा कागज पर
थोक के भाव बिकता रहा
लेकिन मैं बेचैन था
रात भर लिखता रहा
छू रहे थे तब सभी
बुलंदियां आसमान की
मैं सितारों के बीच
चांद की तरह छीपता रहा
दरकत होता तो कब का
टूट कर गिर गया होता
मैं था नाजुक डाली जो
सबके आगे झुकता रहा
बदला यहां लोगों ने रंग
अपने अपने लिबास से
रंग मेरा भी निखरा पर
मैं मेहंदी की तरह पिस्ता रहा
जिनको जल्दी थी वह
बढ़ चले मंजिल की ओर
मैं वहीं पर समुंदर से राज
गहराई के सीखता रहा
मैं था आसमान जिसने
सितारों को चमकने दिया
सितारों ने आसमान से दगा कर
प्रियतमा धरती को चमका दिया

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