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19 Jan 2020 · 1 min read

धूप को तरसते गमले

बदल गए लोग,
बदल गए भोग,
नहीं रही वो हवा,
नहीं रही वो दवा,
नैतिकता बेअसर,
घुला मजहबी जहर,
भूल गए सब शांति,
जगह जगह अशांति,
बची न लोक लाज,
बदल गए सुर साज,
वो आँगन अब न रहे ,
किस्से कहानी न कहे,
धूप को तरसते गमले,
अब सुखी कोई न मिले,
वो खेल हुए अब पुराने,
गुम हुए खुशनुमा याराने,
बदले सब के हाव भाव,
बची न स्नेह वाली छाँव,
सिमट गया प्यारा बचपन,
भूल गए सब अपनापन,
।।।।जेपीएल।।।।

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