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4 Jan 2020 · 1 min read

तलाशते हम

तलाशते रहे
ता-जिन्दगी
हम अपनों को
अर ठहर जाते
मुकाम मिल जाता

प्यार वो हमें
बेपनाह कर गयी
फिर ज़िंदगी मे
हमको तनहा कर गयी
चाहत थी उनके इश्क़ मे
पहना होने की,
पर वो लौटकर आने
को भी मना कर गयी
तलाश की भी है हद
मरने के बाद भी
आँखें खुली रख गये

ता-जिन्दगी
माँ
तलाशती रही
औलाद को
“पर” निकलते ही
“पंछी” गुम हो गये

सीमा पर था वो
दुआ करती रही
वो सुहाग की
हर रात तलाशती थी
उसे सपनों में
मिलती खबर जब
ख़ैरियत की
अगली तलाश में
फिर वो थी जीती

होती नहीँ तलाश
कभी खत्म रिश्तों की
तलाशते तलाशते
जिन्दगी खत्म हो गयी

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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