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4 Jan 2020 · 1 min read

सज सँवर अंजुमन में वो गर जाएँगे

ग़ज़ल-

सज सँवर अंजुमन में वो गर जाएँगे
देख परियों के चेहरे उतर जाएँगे

जाँ निसार अपनी है तो उन्हीं पे सदा
वो कहेंगे जिधर हम उधर जाएँगे

ऐ ! हवा ना तू कर ऐसी अठखेलियाँ
उनके चेहरे पे गेसू बिखर जाएँगे

पासबाँ कितने बेदार हों हर तरफ
उनसे मिलने को हद से गुजर जाएँगे

है मुहब्बत का तूफां जो दिल में भरा
उनकी नफ़रत के शर बे-असर जाएँगे

बेरुखी उनकी अपनी बनी बेखुदी
होगी नजर-ए-इनायत सुधर जाएँगे

पावती खत की कासिद ले आना सँभाल
दिल दिया हमने वो तो मुकर जाएँगे

लड़ते लहरों से जो भी रहे हैं सदा
हों भँवर जितने भी पार कर जाएँगे

लाख पहरे हों बेशक तो होते रहें
हम हैं परवाने ‘कंवर’ निडर जाएँगे

1 Comment · 275 Views
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