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31 Dec 2019 · 2 min read

मेरे सामने वाली खुली खिडक़ी

————– कहानी———————-
—–मेरी सामने वाली खुली खिडक़ी———–
———————————- बारहवीं की परीक्षा उतीर्ण करने के पश्चात आगे की इंजीनियरिंग की पढाई हेतु गाँव से लगभग 350 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के पुणे शहर के बाहरी निर्जन क्षेत्र में बने इंजीनियरिंग महाविद्यालय में दाखिला लिया था।महाविद्यालय आवासीय नहीं था,इसलिए रहने हेतु शहर में एक प्रतिष्ठित पी.जी. में एक कमरा किराये पर ले लिया।शुरुआती दिनों में कमरे मन नहीं लगता था,क्योंकि मन अभी तक घर और गांव की स्मृतियों तक ही सीमित था। मेरे कमरे की खिड़की से सट कर एक कुर्सी और मेज के साथ मैंने पढने की व्यवस्था की थी। गर्मियों में अकसर हवा और प्रकाश के उद्देश्य हेतु मैं बंद खिडक़ी को खोल लिया करता था। मेरी खिडक़ी के सामने वाले घर की खिडक़ी भी मेरी खिडक़ी की ओर खुलती थी। कुछ दिन तो वो खिड़की बंद रही। एक दिन अचानक वो खिडक़ी आवाज के साथ खुली। आवाज से खिड़की खुलते ही मेरा ध्यान भंग होकर उस ओर आकृष्ट हुआ। खुली खिडक़ी मेंं मेरी ओर झांकते सुंदर मासुम से आकर्षित करने वाले अर्द्ध घुंघराले गेसुओं से ढके गोरे गोल मटोल चेहरा देखकर मैं दंग रह गया। श्वेत हिम सा अपने स्थान पर जम सा गया। उम्र कोई 16-18 की होगी ।खिडक़ी मे से आते सूर्य की प्रकाश के ताप से अपने गीले बालों को सुखाने का प्रयत्न कर रही थी। झटकते गेसुओं में से गिरती शबनम सी पानी की बूँदें अच्छी लग रही थी।उसने मेनका अप्सरा सी भांति मुझ विश्वामित्र का पढाई मे ध्यान पूर्णता भंग कर दिया था। मैं पढाई को भूलकर टकटकी लगाए सुंदरी की सुंदरता को अपनी मयकशी नजरों से निहार रहा था। उसका ध्यान मेरी ओर जैसे ही हुआ ,मैंने अपनी आँखे नीचे कर ली थी।लेकिन मैंने उसकी मद्धिम सी मंद मद मुस्कान को देख लिया था। मेरे अंदर की धड़कन तेज हो गई थी और तनबदन अंग-प्रत्यंग सिरहन। खिड़की बंद कर वह जा चुकी थी। परन्तु मेरी नजर अब भी उसकी खिडक़ी की तरफ था। यह सिलसिला प्रत्येक रविवार और छुट्टी वाले दिन निरन्तरता में जारी रहता । हम दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित हो रहे थे और मन में पैदा हो रहा था एक अलग सा एहसास और रोमांच…….। कुछ दिनों से बंद पड़ी उसकी खिडक़ी ने मेरी बैचेनी, चिंता और शंका को बढ़ा दिया था। पड़ताल करने पर पाया कि वह परिवार सहित किराए के घर को छोड़कर जा चुकी थी। और मेरा मन व्यथित विचलित सा उदासीन….. दिल की बात बयां नहीं कर पाने पर खुद पर क्रोधित… उसके बिना बताए चले जाने पर गुस्सा…और उसको सदा सदा के लिए खो दिए जाने का पछतावा..। इन विचारों और एहसासों से ओत प्रोत आज भी मेरे पहले प्यार की खुली खिडक़ी ,जो सदा के लिए बंद हो गई थी….आज भी मेरे दिल मन मैं तरोताजा और जीवित है…..।

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
9896872258

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