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24 Dec 2019 · 1 min read

हज़ल- गप्पों में मेरी दर्शक तल्लीन हो गए हैं

गप्पों में मेरी दर्शक तल्लीन हो गए हैं।
दारू के साथ वाला नमकीन हो गये हैं।।

उतरा नशा तुम्हारा ठुमकों का यार कब से।
कविता के आज सारे शौकीन हो गए हैं।।

दीवानों में न ढूँढो, तुम पागलों को यारो।
ये मंच पर ही देखो, आसीन हो गए हैं।।

क्या सोच के आये थे, होगी कली कुवाँरी।
शादीशुदा जो देखी , ग़मगीन हो गए हैं।।

नाचोंगे तुम यहाँ पे, नागिन के जैसे यारो।
अब ‘कल्प’ से कलमवर भी बीन हो गये हैं।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
221 2122 221 2122

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