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21 Dec 2019 · 1 min read

उठाऊँ लेखनी जब भी

उठाऊँ लेखनी जब भी हृदय का दर्द झरता है।
मनाऊँ लाख मैं खुद को नहीं दिल धीर धरता है।
जगत को देख कर रोई बिगड़ते हाल पर रोई,
कठिन है वेदना सहना नयन में नीर भरता है।

-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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