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18 Dec 2019 · 1 min read

प्रेम की है सौगात मिली

चुपके-चुपके,धीरे- धीरे
प्रेम की है सौगात मिली

प्यासे थे हम पपीहों से
प्यार की बरसात मिली

नयन थक गए थे हमारे
नयनों को निजात मिली

जीवन था, यूँ बीत रहा
अब हमेंं शुरुआत मिली

भूखे थे किसी चाहत के
वो अब प्रेम- भात मिली

अकेले थे ,तन्हा- तन्हा
जीवनसाथी उदात्त मिली

जीवन था उदासीन सा
खुशियों की है दात मिली

मैं कदापि काबिल ना था
भ़ेट ऐसी अवदात मिली

शूल कांटों ने मुझे घेरा था
फूलों की पारिजात मिली

सुंदर- चंचल -नटखट सी
मासूम परी सी गात मिली

छाया घनघोर अंधेरा था
नव -जीवन प्रभात मिली

दिन तो थे बहुत उष्ण भरे
शीतल सी शांत रात मिली

चुपके- चुपके, धीरे- धीरे
प्रेप की है सौगात मिली

-सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
9896872258

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