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15 Dec 2019 · 1 min read

राह कोई नयी-सी बनाते चलो।

◆छंद:-वाचिक सृग्विणी
◆मापनी:-212 212 212 212

राह कोई नयी-सी बनाते चलो।
दूरियाँ मंजिलों की मिटाते चलो।

जिंदगी में खुशी के कभी फूल हैं।
तो कभी कष्टदायी कई शूल हैं।
शूल को भी गले से लगाते चलो।
राह कोई नयी-सी बनाते चलो।

मुश्किलों में कभी धैर्य खोना नहीं।
सामने मौत को देख रोना नहीं।
फिक्र हो तो धुएँ में उड़ाते चलो।
राह कोई नयी-सी बनाते चलो।

जिन्दगी है कहीं धूप छाया कहीं।
सत्य भी है कहीं मोह-माया कहीं।
धूप में भी स्वयं को तपाते चलो।
राह कोई नयी-सी बनाते चलो।

हो अँधेरा घना रोशनी ढ़ूंढ़ना।
दूसरों के लबों पे हँसी ढ़ूंढ़ना।
जिंदगी में खुशी को लुटाते चलो।
राह कोई नयी-सी बनाते चलो।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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