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5 Dec 2019 · 1 min read

विवाह एक उत्सव

आती जब
परिणय की घड़ी
झूम उठता
मन मयूर
गूंज उठती
ढोल शहनाई
सज जाता घर
तोरण कलश

विवाह है
पवित्र बंधन
करें सम्मान
बेटी का
रखे मान
आये जब
बन कर बहू

समझ हो आपसी
पति पत्नी में
अहं घमंड की
न हो जगह
समर्पण ही है
विवाह संस्कार

गूंजे जब
किलकारी
अंगना
हो जाये
जीवन
जीवन्त

करों मान
बुजुर्गों का
पाये आशीष
उनका
रहेँ सबसे
मिल कर घर में
पाये सम्मान
समाज में

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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