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3 Dec 2019 · 1 min read

व्यस्त जिन्दगी

जाल है
जिन्दगी का
फैली है
भीड़ भाड़
डर है
दुर्घटनाओं का

है कैसी
विकटता
व्यस्त है
हर कोई

भागती दौड़ती
जिन्दगी
कमाने की
जद्दो-जहद
भाग दौड़
मची है
हर तरफ
यह हैं
बड़े शहरों के
पुराने बाजार

बनाये रखी है
पहचान
इन बाजारों ने
माॅल
सुपर बाजारों
के बीच
जिन्दा रखा है
आम आदमी को

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
373 Views
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