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28 Nov 2019 · 1 min read

सड़के अंतहीन

अंतहीन सड़कें
कहाँ आरंभ
कहाँ अंत
पता नहीँ
आड़ी तिरछी
ऊँची नीची
मुकाम तलक
पहुँचाती सड़कें
चौराहे गुमनाम
पगडंडी और
गलियाँ बदनाम

मिले थे किसी
सड़क किनारे हम
किसी दौराहे पर
एक तरफ तुम गये
एक तरफ हम
फासले बढते गये
हर मोड़ पर
मुड़ते गये
अंतहीन सड़क पर
चलते रहे
उदासीन
उपेक्षित
था यह
मौड आखिरी
दिख गये तुम
गले लग गये हम
मुकाम की
तलाश में फिर
आगे बढ़ गये हम

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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