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27 Nov 2019 · 1 min read

मन

मन
—-
खुद के सिवा न कोई संगी !
मन होता भई बड़ा दुरंगी !

किसी पराए को जा अपनाता
कभी अपनों को पराया कर जाता !
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

माया की ऊँची नगरी बसाता
कभी उसी नगरी को आग लगाता
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

चाहे तो दोस्त से दुश्मनी निभाता
कभी जा पुराने बैरी को गले लगाता
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

प्यार में चाहे तो दुनिया लुटाता
कभी उसी दुनिया को मिट्टी में मिलाता
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

मोह में बंधने की तरकीब जुटाता
कभी वही बंधन तोड़ भाग जाता
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

किसी के गुण पर बरबस रीझ जाता
कभी उन्हीं गुणों को धता बताता
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

सुख में कभी कलपता रहता
कभी दुखों में चैन की बंसी बजाता
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

जब प्यार मिले तो चिढ़ सा जाता
कभी प्यार बांटने को अकुलाता
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

लगी प्यास बुझाने नदी तक जाता
कभी बारिश बन सागर की प्यास बुझाता
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

भरे मेले में भी अकेला पड़ जाता
कभी अकेले में सपनों की दुनिया सजाता
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !

जहां लग जाए वहीं धूनी रमाता
कभी उखड़ जाए फिर लौट कर न आता !
मन ये भईया बड़ा दुरंगी !
तभी तो खुद के सिवाय
इसका कोई न संगी !

~Sugyata
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