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24 Nov 2019 · 1 min read

धूर्त आदमी

जुबां पे दिलकश दिलफरेबी बातों का शहद,
दिल में जहर-ओ-फरेब का समंदर हो ॥

मुस्कराहट के साथ फेरते हो नफरती तिलिस्म,
सोचता हूँ कितने ऊपर औ कितने जमीं के अन्दर हो ॥

फूलों की डाल से दिखाई देते हो लेकिन,
यकीन से लपेटा हुआ विशाक्त तेजाबी खन्जर हो ॥

ये दुनिया ढ़ल चुकी है तुम भेड़ियों के लिए,
कोई नहीं जानता तुम किसकी खाल के अन्दर हो ।।

वो वेचारे पीटते रहें ढ़ोल शराफ़त सच्चाई का,
कौन पूछता अब उनको तुम आज के सिकन्दर हो ।।

@ नील पदम्
०८-०४-२०१८

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