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20 Nov 2019 · 1 min read

घर से दूर रहने वाले विद्यार्थी को समर्पित

घर जाता हूं तो मेरा ही बैग मुझे चिढ़ाता है ।
मेहमान हूं यह पल पल मुझे बताता है ।
मां कहती है, सामान बैग में डालो,
हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छूट जाता है ।

घर पहुंचने से पहले ही लौटने का टिकट,
समय परिंदे सा उड़ता जाता है ।
उंगलियों पर ले जाता हूं गिनती के दिन,
समय बर्फ की तरह फिसलता जाता है ।

बेटा कब आएगा वापस हर बार मां कह जाती हैं ।
रोती हुई आंखों को यह बातें धुंधला जाती है ।

घर आते समय बजनी हुआ बैग, सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है।
तू एक मेहमान है यह पल पल मुझे बताता है ।
हर रोज मुझे मेरा घर वाकई बहुत याद आता है ।

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