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13 Nov 2019 · 1 min read

*"बचपन के दिन"*

” बचपन के दिन”
काश ..! बचपन के दिन फिर से लौट आते।
पचपन के हो बचपन जैसे छोटे बच्चे बन जाते।
इतराते बल खाते झूमते हुए खेलते गाना गाते।
भाई बहनों से नोकझोंक कर वापस लौट आते।
भूली बिसरी बातों का यादकर बहुत ही पछताते
ना जाने क्यों इतनी जल्दी समय से बड़े हो जाते
बचपन के वो खेल खिलौनें निराले भूल ना पाते
छूट गई दोस्ती यारी न जानें कितनी धूम मचाते
अब पचपन में नाती ,पोते संग फिर से दोहराते
नाना – नानी,दादियों की कहानियाँ भी दोहराते
बचपन खेलकूद में गंवाया अब समय दे न पाते
गुजरा जमाना बीत गया बदलाव नही ला पाते
जो जैसा वही रहेगा अब सुकून चैन नही पाते
कभी पुराने साथी बचपन के टकरा ही जाते
काश ..! बचपन के दिन फिर से लौट आ जाते
*राधे राधे जय श्री कृष्णा *

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