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12 Nov 2019 · 1 min read

कुंडलिया छंद

बरसे नयना याद में, पिया गये परदेश।
निर्मोही आया नही, ना भेजत संदेश।।

ना भेजत संदेश, कहूँ मैं किससे दुखड़ा।
भये दूज के चाँद, दिखावत नाही मुखड़ा।।

कहे सचिन कविराय, दरश को नयना तरसे।
जैसे सावन मेघ, झमाझम बदरा बरसे।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

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