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22 Sep 2019 · 1 min read

ठहरे पानी में आई रवानी ख़ुदा--- इश्क-ए-माही

ग़ज़ल — 04

ठहरे पानी में आई रवानी ख़ुदा
ज़िन्दगी को मिली ज़िन्दगानी ख़ुदा

वक्त रंगत बदलता रहा हर घड़ी
दास्ताँ क्या लिखी है सुहानी ख़ुदा

आ गये तेरी ज़न्नत में हम तो प्रिये
छोड़ सब कुछ जहाँ की निशानी ख़ुदा

जानता है तू रग रग की हर बात को
अब कहें क्या तुझे हम जुवानी ख़ुदा

है नहीं कोई भी जग में तुझसा सनम
जो रचे इक नई अब कहानी ख़ुदा

नाम “माही” रहे मेरा सदियों तलक
रूप गढ़ दे कोई आ नुरानी ख़ुदा

©® डॉ प्रतिभा माही

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