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7 Sep 2019 · 2 min read

शिक्षक के उद्गार

भारतवर्ष का बहुत ही गौरवशाली इतिहास रहा है। इसने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अपनी एक अद्भुत पहचान बनायी है। इसकी गरिमामयी इतिहास की गाथा का वहाँ से पता लगाया जा सकता है जब इस माँ भारती ने ऐसे वीर सपुतों को जन्म दिया है, जिन्हें अखिल ब्रह्माण्ड जानता है।

साथ ही कैसे -कैसे विदूषक व ज्ञानपूँज इस माँ भारती के गोद में खेले हैं, इसका अनुमान वहाँ से लगाया जा सकता है जहाँ पर एक लकड़हारा संस्कृत में बात करता था।
आधुनिक काल में भी माँ भारती इस प्रकार के विद्वत्त सन्तति को जन्म देती आ रही है इसका जीता-जागता प्रमाण हुए हैं हमारे आचार्य प्रवर जिनके जन्मदिवस को आज हम सब मना रहे हैं।
इस माँ भारती के अत्यन्त ही स्नेही सपुत का नाम था डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी जो हमारे भारत देश के द्वितीय राष्ट्रपति व प्रथम उपराष्ट्रपति हुए।इनके माता-पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी तथा सीताम्मा था। इनका जन्म तिरुतन्नी नाम के मद्रास प्रेसीडेन्सी में हुआ था। ये शिक्षकों के उत्थान के लिए बहुत चिन्तित रहते थे, इसी कारणवश इन्होंने अपने जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने को कहा था। आज हम सभी ज्ञान के क्षेत्र के थोड़े उच्च विद्यार्थियों को ज्ञान के वास्तविक साधकों को स्नेहवर्षण कर जीवन पथ पर अग्रसर करने की आवश्यकता है।
हम सभी शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में थोडे़ उच्च विद्यार्थी ही तो हैं क्योंकि मनुष्य जीवन पर्यन्त सीखता ही रहता है और वो एक जन्म में कभी भी पूर्णतः सीख नहीं सकता।
हाँ बच्चों को ज्ञान का वास्तविक साधक इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि वो अभी साधनारत हैं।

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