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4 Sep 2019 · 1 min read

प्रेम के दौहे

प्रेम है अति पावना, हवस देह व्यापार।
दोनों में अंतर बहुत, नादा समझें प्यार।।
【1】
हवसी तन को लूटता, प्रेमी परम् उदार।
है कलंक माथे हवस , प्रेम जगत आधार।।
【2】
मन मर चुका हमार अब, तन से रह बीमार।
प्रेमी बिन सम्भव नही, प्रेम रोग उपचार।।
【3】
निश्छल प्रेम जो रम गए, हरि अनुरक्ति पाए।
ज्ञान ध्यान अडंबरा, यहीं धरो रह जाए।।
【4】
प्रेमी पारस की मनी, हवसी तन शमसीर।
एक छुअत निखरे बदन, हवस घाव सम तीर।।
【5】
मुर्दा हुआ शरीर तब, निकले तन से प्राण।
प्रियतम मन से जब गए, तन मन सब बेजान।।
【6】
अरविंद राजपूत ‘कल्प’

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