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30 Aug 2019 · 1 min read

चलती वादों की आँधियाँ देखी

चलती यादों की आँधियाँ देखीं
गिरती इस दिल पे बिजलियाँ देखीं

इस मुहब्बत में हमने तो कितनी
खिलती वादों की बाजियाँ देखीं

सिसकियाँ रिश्तों की सुनी हमने
ऊँची जितनी हवेलियाँ देखीं

ताज़गी साँस में बसे कैसे
घर में बस बंद खिड़कियाँ देखीं

आहटें सूँघती हुई हमने
दर पे लटकी उदासियाँ देखीं

हमने ईमान की भी पग पग पर
‘अर्चना’ लगती बोलियाँ देखीं

30-08-2017
डॉ अर्चना गुप्ता

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