तुम्हे ढूंढती है निगाहेँ
वही मुस्कान वही प्यार
उसी बेचैनियों के नजारे
उसी सरक से गुजरकर
उसी घाट के किनारे
कही दूर झीलसि
तुम्हे ढूंढती है निगाहेँ
सूनेपन के कोने की
सारी खिड़कियां खोल
एहसासो के हवा को
जब भी चूमती है
कही दूर झीलसि
तुम्हे ढूंढती है निगाहेँ
तुम मिलजाओगे
किसी मोरपर
इसी भरोसे के सहारे
हर मोरसे गुजरकर
वही ठहरती है नजारे
कही दूर झीलसि
तुम्हे ढूंढती है निगाहेँ
तुम्हे हरबार
तुझमे ही ढूंढकर
वही पत्ता लिए
हर गलियों में
भटकती है निगाहेँ
कही दूर झीलसि
तुम्हे ढूंढती है निगाहेँ
✍️सोना भारती
(21-08-2019)