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25 Jul 2019 · 1 min read

गुल चाहता है

मैं चाहता हूँ

गुल चाहता हूँ न गुलिस्तान चाहता हूँ।
वंचितों के ओठों पे मुस्कान चाहता हूँ।।

चहूँ ओर गूंजते हैं मजहबी नारे,
मैं भंवरों के मधुर गान चाहता हूँ।।

जो जाति-धर्म की दरो-दीवार तोङ दे,
लोक हित में ऐसा फरमान चाहता हूँ।।

छल-कपट जहां से समूल नष्ट हो जाए,
चहकता-महकता जहान चाहता हूँ।।

बुजुर्गों का आशीर्वाद बना रहे सदा,
बहू-बेटियों का सम्मान चाहता हूँ।।

हक से सिल्ला’ न कोई भी महरूम हो,
फलता-फूलता भारत महान चाहता हूँ।।

-विनोद सिल्ला©

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