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22 Jul 2019 · 6 min read

बूँद ने कहा

बूँद ने कहा

‘पापा देखो कितनी सुन्दर पानी की बूँदें’ बिटिया ने उत्साहित होकर पापा से कहा था । रात में हल्की बारिश हुई थी । टीन की छत पर बारिश के कदमों की आहट निरन्तर पड़ कर एक जलीय संगीत उत्पन्न कर रही थीं । बारिश की बूँदों की गति से संगीत की लहरियाँ लहरों की भाँति उठती गिरती थीं । सुबह 4 बजे का समय था । ब्रह्मवेला । बूँदों की आहट से पलकों के पर्दे उठ गए थे । टीन की छत पर जमी मिट्टी के साथ मिलकर बूँदें मिट्टी को सांेधी सोंधी खुशबू बिखेर रही थीं । मौसम खुशगवार हो गया था । पापा उठकर खुले आँगन में आ गए थे और साथ साथ उनकी नन्हीं बिटिया । दोनों वहीं आँगन में कुर्सी डालकर बैठ गए और निहारते रहे कुदरत की खूबसूरतियों को । बूँदों के टपकने की गति समाप्त प्राय हो गई थी । देखते ही देखते सुबह के 5.30 बज गये । ‘आओ बिटिया, थोड़ी देर सैर कर के आते हैं’ पापा ने बिटिया से कहा । बिटिया सहर्ष तैयार हो गई । दोनों घर से निकल पड़े । ‘देखो, देखो पापा अभी भी बारिश की बूँदें घरों से टपक रही हैं । ’ बिटिया काफी उल्लासित थी । रात की हल्की बारिश ने मौसम सुहावना बना दिया था । सैर करते करते दोनों पास के पहाड़ीनुमा बगीचे में पहुँच गये थे । हरे-भरे पेड़ पौधे, विशाल वृक्ष, हरी घास, चारों ओर हरियाली छाई हुई थी । रात की बारिश से धुलकर पत्तियों का हरा रंग चमक कर निखर आया था । इस हरियाली की छटा ही कुछ अलग थी । बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हुई ।

आगे बढ़े तो बिटिया चहक कर बोली ‘वो देखो पापा, इन छोटे वाले पेड़ों पर नई नई पत्तियाँ कितनी कोमल और कितनी सुन्दर लग रही हैं । मुझे थोड़ा उठाओ न । मैं इन्हें छूना चाहती हूँ । कितनी खूबसूरत हैं ये !’ पापा ने बिटिया को उठा लिया और बिटिया के नन्हें हाथ उन नन्हीं कोमल पत्तियों तक पहुँच गये । बिटिया उन नन्हीं पत्तियों को स्नेह से सहला रही थी इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए कि उनकी कोमलता को कहीं भी चोट न पहुँचे । पत्तियाँ भी ऐसा कोमल स्पर्श पाकर खिल उठी थीं और ऐसा लगा कि मुस्कुरा रही थीं । नीचे उतर कर बिटिया फिर पापा के साथ चलने लगी । पापा ने चलते चलते पूछा ‘देखा तुमने, कितनी सुन्दर थी वे नन्हीं नई नई पत्तियाँ । ये अभी हल्के हरे रंग की हैं । क्या तुम्हें मालूम है इन नई नई नन्हीं कोमल पत्तियों का भी अपना नाम होता है ?’ ‘नाम ! कैसा नाम ! पत्तियों को तो पत्तियाँ ही कहेंगे न पापा’ बिटिया ने कहा । ‘तो सुनो, नई नई पल्लवित हुई इन पत्तियों को कहा जाता है – ‘किसलय’ । किसी भी पेड़ की हों, किसी भी पौधे की हों, सभी तरह की नई पत्तियों को किसलय कहा जाता है ।‘ पापा ने बताया । ‘अरे वाह, कितना सुन्दर नाम है – किसलय’ बिटिया ने चहक कर कहा । ‘मैं आज क्लास में जाकर अपनी सहेलियों को यह बताऊँगी, बहुत मज़ा आयेगा । उन्हें भी नई बात पता चलेगी । आज तो सैर करने का मज़ा आ गया’ कह रही बिटिया बहुत उल्लासित थी । और क्यों न हो, आज वह कक्षा में अपने ज्ञान की धाक जो जमाएगी । चलते चलते पापा बोले ‘जब तुम अगली कक्षा में जाओगी तो तुम्हारी हिन्दी की पुस्तिका में एक कविता होगी ‘एक बूँद’ जिसकी रचना की थी श्री अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने । बहुत सुन्दर कविता है । बहुत सुन्दर अर्थ है । पढ़ने के बाद हिम्मत आती है, मन में जोश आता है और कुछ अलग करने की इच्छा होती है । उसकी पंक्तियाँ इस प्रकार हैं – ‘ ज्यों निकल कर बादलों की गोद सेए थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी। सोचने फिर.फिर यही जी में लगीए आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी देव मेरे भाग्य में क्या है बदा मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी चू पडूँगी या कमल के फूल में बह गयी उस काल एक ऐसी हवा वह समुन्दर ओर आई अनमनी। एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला वह उसी में जा पड़ी मोती बनी । लोग यों ही हैं झिझकते सोचते जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें बूँद लौं कुछ और ही देता है कर ।

कविता सुनाते सुनाते पापा भावुक हो गये थे । उनकी आँखों के बादल से छूटी कुछ बूँदें उनकी पलकों पर ठहर गई थीं । बिटिया एकदम बोली ‘पापा, पापा, देखो, आपकी पलकों पर भी बूँदें ।’ यह सुनकर जैसे ही पापा पलकें पोंछने लगे तो बिटिया ने हाथ पकड़ लिया ‘कुछ न करो पापा, बहुत सुन्दर लग रही हैं । आपकी आँखें कितनी चमक रही हैं देखो ना ।’ बिटिया की मासूमियत से अब पिता की आँखों से बारिश होने लगी थी । ‘आप रो रहे हैं, पापा । क्या हुआ ?’ बिटिया ने पूछा । ‘नहीं, मेरी नन्हीं परी, मैं कुछ सोचने लगा था’ पापा सम्भलते हुए बोले । ‘क्या सोच रहे थे ?’ बिटिया ने फिर सवाल किया । कुछ देर पापा चुप रहे । फिर बोले ‘बेटी, तू अभी हमारे बादलों में घूमती है, नाचती है, कूदती है, सबका मन बहलाती है, बड़ बड़ भी करती है, हँसती है, रोती है, मन का खाती है पीती है, तुझे देख कर सब चहकते हैं । पर एक दिन आयेगा जब तू भी हमारे बादलों में से बूँद की भाँति जुदा हो जायेगी । मैं हमेशा ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि तू जब ही हम से विदा हो तू सीप के अन्दर ही जा और मोती की तरह निखर, सबको खुश रख और सब तुझे खुश रखें । तेरी ज़िन्दगी में काँटे न हों । बस यही सोचने लगा था । पर तू अभी छोटी है, क्या समझेगी ?’ बिटिया अपने गाल पर उंगली रखकर ऐसे दिख रही थी कि जैसे गहरी बात सोच रही हो पर फिर एकदम बोली ‘चलो पापा, उधर चलते हैं । वहाँ भी खूबसूरत क्यारियाँ और झाड़ियाँ हैं ।’ पापा की उंगली पकड़ कर दूसरी तरफ ले गई । पापा भी हँसते हँसते चल पड़े थे ।

‘पापा, देखो छोटी छोटी क्यारियों में नन्हें फूलों और नन्हीं पत्तियों पर ठहरी हुई बारिश की बूँदें कैसे चाँदी की तरह चमक रही हैं ! कितनी सुन्दर लग रही हैं !’ बिटिया को बहुत अच्छा लग रहा था । क्यारियों से झाड़ियों की ओर बढ़ी तो देखा वृक्षों के सायांे में उगी झाड़ियों में लगे पौधों में से कुछेक पर बहुत कम पत्तियाँ रह गई हैं जबकि बाकी झाड़ियाँ बिना पत्तियों के हैं । ‘पापा, इनकी पत्तियाँ कहाँ गईं ।’ बिटिया ने पूछा । ‘बेटी, इन झाड़ियों के लिए यह पतझड़ का मौसम है, इसमें इनकी पत्तियाँ झड़ जाती हैं और फिर नयी आ जाती हैं ।’ ‘अच्छा, तो यह बात है ।‘ कहते कहते बिटिया कहीं और देखने लगी थी । ‘पापा, पापा, देखो इन बिना पत्तियों वाली झाड़ियों पर भी बारिश की बूँदें ठहरी हुई हैं और कितनी सुन्दर लग रही हैं । वाह, झाड़ी के हर शाखा के कोने पर बूँद ठहरी हुई है मानो बारिश के फूल खिले हों । कितना अच्छा लग रहा है । वो देखो, झाड़ियों के ऊपर बड़े पेड़ के पत्तों से धीरे धीरे गिर कर बारिश की बूँदें इन सूखी झाड़ियों की शाखाओं के किनारों पर मोती की तरह सज रही हैं । बड़े पत्तों पर भी यह सुन्दर लग रही थीं । पर अब बड़े पत्तों ने इनका साथ छोड़ दिया है या बारिश की बूँदें उन पत्तों को छोड़ चुकी हैं पर गिरने से पहले झाड़ियों ने इन्हें सम्भाल लिया है । यहाँ भी कितनी सुन्दर लग रही हैं ।’ बिटिया बोले जा रही थी । पापा ‘हूँ … हूँ करते हुए अपने मोबाइल की तरफ देखने लगे थे क्योंकि उनके प्रिय मित्र बालसखा सुकेश का अभी अभी एक खूबसूरत सन्देश मिला था –

‘कंटीली झाड़ियों पर ठहरी हुई बूँदों ने बस यही बताया है, पत्तों ने साथ छोड़ा तो क्या, कुदरत ने तुझे मोतियों से सजाया है’ ।

संदेश पढ़कर पापा का मन यह सोच कर प्रसन्न हो गया था क्योंकि उन्हें सुकेश के संदेश से तसल्ली हो गई थी कि बादलों से विदा होकर अगर बिटिया कंटीली झाड़ियों से भी अगर टकरायेगी तो वहाँ भी मोतियों की भाँति सजेगी क्योंकि उनकी बिटिया है ही इतनी गुणवान और सुन्दर ।

Language: Hindi
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