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18 Jul 2019 · 1 min read

"" फिर उठी नहीं नज़र " !!

ग़ज़ल / गीतिका

आपसे मिली नज़र ,
फिर उठी नहीं नज़र !!

क्या कहें , सुने भला ,
कुछ नहीं मिली खबर !!

चढ़ रही खुमारियाँ ,
दिख रहा कहीं असर !!

मिन्नतें हज़ार की ,
वक़्त से यहीं ठहर !!

लाख आँधियाँ चले ,
भूलते नहीं डगर !!

आपने करी ठगी ,
मूक से वहीं प्रहर !!

रात रात हम जगे ,
हाथ है लगी सहर !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

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