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8 Jul 2019 · 2 min read

उजला किरदार

डॉक्टर अमीन का नाम बस्ती में बेहद अदबो एहतराम के साथ लिया जाता है। दो साल पहले ही तो डॉक्टर साहब ने गाँव से कस्बे में आकर क्लीनिक खोला था। उनके यहां दिन भर अच्छी बातें होती रहती थीं। नौजवानों को भलाई की बातें भी बताया करते थे। कस्बे में गमी-खुशी, कुछ भी हो डॉक्टर साहब जरूर नजर आते हैं। साफ किरदार के डॉक्टर साहब एक बेहतरीन इंसान के तौर पर जाने जाते थे।
एक रोज की बात है, रोजाना की तरह डॉक्टर साहब अपने क्लीनिक में अकेले बैठे थे। दोपहर का वक्त था। जुहर की अजान हो चुकी थी नमाजी मस्जिद की तरफ आ रहे थे। लोगों ने देखा डॉक्टर साहब और एक औरत के बीच झाँय-पाँय हो रही है। नमाजियों की जमाअत वहां जमा हो गई। जानकारी करने पर मालूम हुआ कि औरत को गली में कुछ रुपये पड़े मिले हैं। डॉक्टर साहब उन रुपयों पर अपना दावा कर रहे हैं। औरत का यही कहना था कि उसे रुपये पड़े मिले हैं, अगर डॉक्टर साहब के है और वो सही गिनती बता दे ंतो वह सारे रुपये उन्हें दे देगी। डॉक्टर साहब का कहना था कि उनके रुपये गिर गए थे, गिनती नहीं मालूम।
काफी हीला-हुज्जत के बाद एक बड़े मियाँ ने फैसला कराने की पहल की। बोले, ‘अच्छा रुपये दिखाओ, आधे-आधे करा देंगे।’ इस पर महिला ने बंद मुट्ठी खोल दी। यह क्या… सारे लोग अवाक, सारे के सारे नोट नकली। तब समझ में आया बरगद के नीचे खेलने वाले बच्चे नकली नोट पड़े छोड़ गए थे। अभी तक जिस जगह झाँय-पाँय हो रही थी, वहाँ अब सन्नाटा था। महिला नोटों को सबके सामने फेंक कर चली गई।

@ अरशद रसूल

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