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8 Jul 2019 · 2 min read

वह भी परी है अपने पापा की-

वह मां जो बड़े चाव से,
बेटे को पाल पोस कर लायक बनाती है।
उसकी हर कामयाबी पर ,
बड़े गुमान से दीपक घी का जलाती है।
अपने बेटे के दुर्गुणों को भी गुणों में परिणित कर,
चार चांद लगाती है।
लाखों करोड़ों में एक चुन कर ,
दुल्हन बनाकर घर लाती है।
बारात में जमकर थिरकती है,
न जाने कितने न्योछावर कर देती है।
स्वागत में खुद थाल सजाकर,
आरती उतारकर लाख बलैया लेती है
मगर बहुत ही जल्द उस चुनी हुई दुल्हन को,
कलमुंही बताती है।
उस होनहार बेटे को ,
जोरू का गुलाम,और निकम्मा उपनाम बुलाती है।
जिस दौलत को तू जोड़ रही थी ,
अपनी औलाद के लिए।
जोड़ कर महल बनाया था ,
कि एक दिन दुल्हन पायल छनकाएगी ।
उसे ही तूने मजबूर किया घर छोड़ने को,
तू बता किसके साथ बुढ़ापा बिताएगी।
जिस बेटे में बसते थे उसके प्राण ,
उसे वह देखने में भी कतराती है।
अपनी ममता का सारा कर्ज़ वह,
फ़र्ज़ बताकर वसूलना चाहती है।
वह भूल जाती है कि जिसे दुल्हन बनाया है ,
वह तेरे बेटे का हम साया है।
वह भी परी है अपने पापा की ,
उसे भी किसी ने बड़ी मन्नतों से पाया है।
बड़े ही अरमानों से पाला होगा ,
उसको भी किसी माली ने,
तब कहीं जाकर तेरे आंगन में सजाया है।
तूने तो बेचा है उसे भरपूर दामों में,
अपनी ममता और परवरिश का एक – एक पैसा पाया है।
इतने पर भी शुक्र मना कि ,
वह तुझे मां कहकर तेरा मान बढ़ाता है।
वर्ना रेखा ऐसे इमोशनल अत्याचारों पर तो,
गुनाह माफी के दायरे से बाहर निकाल दिया जाता है।

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