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16 Jun 2019 · 1 min read

बसंत

पतझड़ बीता फिजाँ बसंती , मिली हमें सौगात
पेड़ों की डाली डाली पर, उगे नये हैं पात

हरा घाघरा पहन धरा ने , पीत चुनर ली ओढ़
गेंदा चंपा और चमेली , हँसकर करते बात

कलियां चटकी फूल बनी हैं, भँवरा गाये राग
धूप गुनगुनी हवा सन्दीली, भीगी भीगी रात

रंगों ने दी दस्तक अपनी, फागुन आया द्वार
कुदरत ने खुश होकर कर दी,फूलों की बरसात

कामदेव ने दिशा चतुर्दिक, बिखराई है प्रीत
सुप्त पड़े थे जो मन में वो, उछल पड़े जज़्बात

मात शारदे ‘अर्चन’करके तुमसे, माँग रहे वरदान
नहीं छोड़ना साथ हमारा, कुछ भी हों हालात

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

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