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15 Jun 2019 · 1 min read

मुक्तक

जरूरत हो तो मेरी लेखनी अंगार लिखती है,
निर्भीकता से यह गद्दार को गद्दार लिखती है
ये मेरी लेखनी ही है मैं जिसके साथ जीती हुँ,
यही तो है जो मेरे मन के सब उद्गार लिखती है

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