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8 Jun 2019 · 1 min read

अनमोल जिंदगानी है ।

चरागा जल रहा है हवाओ की मेहरबानी है,
हवाओ से जला है , हवाओं को ही बुझानी है ।
कैसे गुरूर करता अपने पर दो दिनों की जिंदगानी है ।
कितना परोपकार करूँ सोचता हूँ ।
परिवार के लिए रोटी भी कमानी है ।
नशे और नफरत में नही बर्बाद करनी ,
न मिलती है दुबारा अनमोल जिंदगानी है ।
#विन्ध्य #प्रकाश #मिश्र #विप्र

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