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5 Jun 2019 · 1 min read

पेड़ का दर्द

काट जंगल नगर हम बसाते रहे
पेड़ चुपचाप आँसू बहाते रहे

पेट जिसने भरा और दी छाँव भी
आरियाँ उस बदन पर चलाते रहे

झूलते हम रहे डाल जिसकी पकड़
काट कर हम उसी को जलाते रहे

इन परिंदों के घर तोड़कर हम यहाँ
आशियाने को अपने सजाते रहे

मुड़ के उनकी तरफ देखते भी नहीं
कहने को पेड़ कितने लगाते रहे

स्वार्थ में काट कर पेड़ हम ‘अर्चना’
अपनी धरती को बंजर बनाते रहे

08-09-2017
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

1 Like · 384 Views
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