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21 May 2019 · 1 min read

जो तू न भूले तो बात बराबर।

आगाज़ किया है मैंने साथी, सच से सीधा आँख मिला कर,
क्या इंकलाब भी रोया होगा, भूखे बच्चों से आँख मिला कर
गंगा-सतलुज में क्या आँखे धोया होगा खुद डुबकी लगाकर।

रोते बच्चे के भूखी आँखों से खुद को बिमुख नहीं कर पाती हूँ,
भूख और बेरोजगारी देख, रोज जरा यूँ ही मन में घबराती हूँ,
साथी मैं कुछ भी भूला नहीं पाती हूँ, जो तू न भूले तो बात बराबर।
21-05-2019
⇝ सिद्धार्थ ⇜

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