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19 May 2019 · 1 min read

मुक्तक

मरीज़-ए-इश्क हूँ बेकरार और बेज़ार हूँ
अपने यार से मिलने की बस तलबग़ार हूँ !
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हर रात मेरे तकिए पे करवट बदलते मिलते हो मुझे
हर सुबह पहली अंगड़ाई में लिपटे दीखते हो मुझे
बस नमक़ बराबर इश्क़ सा ही हर रोज लगते हो मुझे !

पुर्दिल

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