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18 May 2019 · 1 min read

दोहे (ज़िन्दगी)

चेहरे पर चेहरा चढ़ा, कैसे हो पहचान
अपने भी तो आजकल, लगते हैं अनजान

दिल में तो है दर्द पर , होठों पर मुस्कान
दिल पर इतना बोझ है, मुश्किल में है जान

जीना है मुश्किल बहुत, मरना है आसान
गलत बड़ी ये सोच है, इसे न मानव मान

हँस के यहाँ गुजार ले, जीवन के दिन चार
आता समय न लौट कर, याद इसे रख यार

पाठ पढ़ाती ज़िन्दगी, उसे कभी मत भूल
फूलों की हर राह में, चुभते भी हैं शूल

किया जवानी में अगर, बस ऐशोआराम
कट जाएगी भोर तो, मुश्किल होगी शाम

शोहरत दौलत पास यदि, बढ़े अनेकों हाथ
बुरे वक्त में पर नहीं , साया भी दे साथ

बच्चों पर माता पिता, तो देते हैं जान
पर ये ही होकर बड़े , रहते खड़े कमान

खामोशी गम की मिली, कहीं खुशी के गीत
हँसते रोते रात दिन, गई ज़िन्दगी बीत

साँसों की ही डोर का , पकड़े अगला छोर
रफ्ता रफ्ता ज़िन्दगी,बढ़े मौत की ओर

18-05-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

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