Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
25 Apr 2019 · 1 min read

गंगा का अपमान

जो बहती थी पवित्रता लिए,
अपने ही धुन में कल कल छल छल,
जिसके पानी अमृत समान थे,
जहां पवित्र होती थी आत्मा नहाकर,
आज जहर लिए फिरती है,
आगोश में अपने,
कारखाने के कचरे, शहर का पानी!
समेटे हुए जलधारा में अपने,
रोते बिलखते हैं गंगा से पोषित,
जलचर भी पूछे हुआ कैसे दूषित,
संवेदनहीन हुआ देखो ganga के बेटे,
गंगा का अपमान सहूं बोलो कैसे!!!

Loading...