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22 Apr 2019 · 1 min read

मेरा श्रृंगार हो गईं ग़ज़लें

मेरा श्रृंगार हो गईं ग़ज़लें
तीज त्यौहार हो गईं ग़ज़लें

इनके बिन बेकरार रहती हूँ
मेरा तो प्यार हो गईं ग़ज़लें

बात करती हैं मन से ये मन की
मन का उपचार हो गईं ग़ज़लें

सौदा होने लगा है अब इनका
मीना बाज़ार हो गईं ग़ज़लें

दिल को कर बाग बाग जाती हैं
उनका रुख़सार हो गईं ग़ज़लें

आँधियाँ चल पड़ी हैं अब इनकी
कितनी बीमार हो गईं ग़ज़लें

मत समझ खुद को ‘अर्चना’ शायर
गर तेरी चार हो गईं ग़ज़लें

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

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