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27 Mar 2019 · 1 min read

सिर में कालिख (हास्य)

दिनांक 27/3/2019

ख्याल आया
एक दिन
बैठे बैठे
नेता कभी
बूढ़ा होता नहीं

हिरोईनें
कहलाती
सदा बहार
अभिनेत्री

तो फिर मैं
सफेद बालों का
बूढ़ाऊ पति
कहलाए क्यो ?

बचा के रखे
पेंशन के पैसों से
ले के आया
सिर की कालिख
इन्तजार किया
सब के सोने का

क्लीन सेव
के बाद
बालों में लगाई
खूब कालिख
बन ठन कर
पहनी जिन्स टाप

फिर बोला :
साला मैं तो
साहिब बन गया
चाल मेरी देखो
रूप मेरा देखो
मैं तो मियाँ
अपनी बीबी का ”

बीबी ने किया
पहचानने से इनकार
नाती पोतों ने किया
डंडे से वार
है कोई लफंगा
घुस आया
घर के अंदर

सिर पकड़
कर बैठा हूँ
बाहर
इन्तजार में
इसके कि
कब हटे
सिर से काली

स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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