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18 Mar 2019 · 2 min read

एक रंग ऐसा भी होली में

एक कविता विलंब वाली
पर भावना की लिए मजबूत डाली
आपका हृदय नहीं रहेगा खाली
बजानी पड़ेगी आपको जरूर ताली

इस होली में
एक रंग माँ को लगाइए
जो दे ममता की छांव और आपकी पालनहार हो जाए
इस होली में
एक रंग पिता को लगाइए
जो आपकी रक्षाकवच, ढाल बने और तलवार हो जाए
इस होली में
एक रंग भाई को लगाइए
जो सुख दुख का साथी बने और आपका सच्चा साझेदार हो जाए
इस होली में
एक रंग बहन को लगाइए
जो आपको अपना समझे और आपकी सलाहकार हो जाए
इस होली में
एक रंग पत्नी को लगाइए
कि उसके सुन्दर कार्यों और रूप से आपका जीवन बहार हो जाए
इस होली में
एक रंग साली को लगाइए
जो बने कमसीन,मनमोहक उसकी कमर लचकदार हो जाए
इस होली में
एक रंग मित्र को लगाइए
जो आपके हृदय को भाये आपका अटूट मिलनसार हो जाए
इस होली में
एक रंग प्रेमिका को लगाइए
जो हरदम छिप छिप कर मिलने को आपसे बेकरार हो जाए
इस होली में
एक रंग नेता को लगाइए
जो रं ना बदले और इस देश में ईमानदार हो जाए
इस होली में
एक रंग पुलिस को लगाइए
जो आम जनता को ना धमकाये, डर का बहिष्कार हो जाए
इस होली में
एक रंग पत्रकार को लगाइए
जो दिखाये सच्ची खबर और देश के दर्पन का असली समाचार हो जाए
इस होली में
एक रंग शिक्षक को लगाइए
जो समाज की बुराइयों को मारकर एक नया शिल्पकार हो जाए
इस होली में
एक रंग चिकित्सक को लगाइए
जो नया जीवन देने वाला देवतुल्य निर्विकार हो जाए
इस होली में
एक रंग कवि को लगाइए
जो अपनी रचनाओं से जगानेवाला विचार हो जाए
इस होली में
एक रंग सैनिक को लगाइए
जो देश की रक्षा में अपना सर्वस्व लुटाने वाला यादगार हो जाए
इस होली में
एक रंग चुनाव को लगाइए
जो शुद्ध जनप्रतिनिधियों को लाए भ्रष्टाचार मुक्त सरकार हो जाए
इस होली में
एक रंग युवा को लगाइए
जो इस देश की दशा और दिशा को बनाने वाला कर्णधार हो जाए
इस होली में
एक रंग प्रेम को लगाइए
जो आप पर अपना सब कुछ लुटाकर त्यौहार हो जाए
इस होली में
एक रंग परोपकार को लगाइए
जो आपकी मानवता के लिए अद्भुत अवतार हो जाए
इस होली में
एक रंग उन्नति को लगाइए
जो भारत को शिखर पर लाए और पूरे विश्व में जय जयकार हो जाए
इस होली में
एक रंग एकता को लगाइए
जो हर भारतीय के सीने में उपजे पूरा भारत एक परिवार हो जाए
इस होली में
एक रंग अपने आप को लगाइए
जो आपका यहाँ जीना धरती माँ के लिए अनुपम परम आभार हो जाए
इस होली में
एक रंग मेरी लेखनी को लगाइए
जो लिखे तो मन आपका समझे नित नया सृजनहार हो जाए

पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.

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