Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Mar 2019 · 2 min read

डायन

सुबह-सुबह नित्यक्रिया से निवृत्त होकर मैं बालकनी में टहल रहा था। चाय की तलब आ रही थी सो सुधा को आवाज लगाकर बेटी को आज का अखबार लाने नीचे भेज दिया। ये पेपर वाला भी नीचे दरवाजे पर ही पेपर फेंक कर चला जाता है।

थोड़ी देर बाद सात साल की बेटी अखबार के मुख पृष्ठ पर छपे समाचार को पढ़ते हुये आयी। आते ही उसने मेरे सम्मुख एक साथ कई सारे प्रश्न दाग दिये – ” पापा ये डायन क्या होती है……? देखिये न आज के अखबार में ये क्या……? और क्यों लोगों ने उसे….? ”

उसके इस प्रकार प्रश्न किये जाने पर अखबार में छपे समाचार के प्रति मेरी जिज्ञासा बढ़ गयी। उसके हाथ से अखबार लेकर मैंने मुखपृष्ठ पर नजरें गड़ा दी। लिखा था – ” कल शाम शहर के गाँधी चौक पर डायन के शक में उन्मादी भीड़ ने एक बृद्ध महिला को बंधक बनाये रखा। किसी ने उसके बाल काट दिये, तो किसी ने उसके वस्त्र फाड़ दिये। किसी ने उसके मुँह में कालिख भी पोत दी। फिर निर्वस्त्र अवस्था में उसे भीड़ भरे बाजार में घुमाया गया। इसी बीच बड़ी निर्ममता से उसकी पिटाई भी की गयी। हर तरह से अपमानित और प्रताड़ित करने के बाद उसे मरणासन्न अवस्था में वहीं गाँधी चौक पर लावारिस हालत में फेंक दिया गया। भीड़ में से कोई भी व्यक्ति उस लाचार की मदद को आगे नहीं आया।

पुलिस के पहुँचने से पूर्व ही उस बेबस लाचार गरीब ने तड़प-तड़प कर उसी गाँधी चौक पर दम तोड़ दिया। गाँधी बाबा की प्रतिमा भी उस लाचार की हालत पर आँसू बहाती रह गयी। ”

पूरी खबर पढ़ने के बाद मुझे ऐसा लगा – मानो शरीर शक्तिविहीन-सा हो गया हो। सुधा कब आकर चाय रखकर चली गयी ज्ञात ही नहीं हो सका। बेटी अब भी मुझे झकझोरते हुये अपना प्रश्न दुहरा रही थी – ” बताओ न पापा – डायन क्या होती है…..? ” – मैं निरुत्तर एकटक छत को घूरे जा रहा था……

Language: Hindi
859 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

माॅ
माॅ
Santosh Shrivastava
उपहार
उपहार
sheema anmol
रामायण ग्रंथ नहीं ग्रस्ति है
रामायण ग्रंथ नहीं ग्रस्ति है
कवि आलम सिंह गुर्जर
अंधकार जितना अधिक होगा प्रकाश का प्रभाव भी उसमें उतना गहरा औ
अंधकार जितना अधिक होगा प्रकाश का प्रभाव भी उसमें उतना गहरा औ
Rj Anand Prajapati
औरतें ऐसी ही होती हैं
औरतें ऐसी ही होती हैं
Mamta Singh Devaa
आसानी से कोई चीज मिल जाएं
आसानी से कोई चीज मिल जाएं
शेखर सिंह
मेरा स्वर्ग
मेरा स्वर्ग
Dr.Priya Soni Khare
3856.💐 *पूर्णिका* 💐
3856.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
तेरे दिल की आवाज़ को हम धड़कनों में छुपा लेंगे।
तेरे दिल की आवाज़ को हम धड़कनों में छुपा लेंगे।
Phool gufran
सुखी जीवन मंत्रा
सुखी जीवन मंत्रा
विजय कुमार अग्रवाल
मेरी खुशी हमेसा भटकती रही
मेरी खुशी हमेसा भटकती रही
Ranjeet kumar patre
क्यों उसको, निहारना छोड़े l
क्यों उसको, निहारना छोड़े l
अरविन्द व्यास
2.नियत या  नियती
2.नियत या  नियती
Lalni Bhardwaj
"विडम्बना"
Dr. Kishan tandon kranti
*अक्षय आशीष*
*अक्षय आशीष*
ABHA PANDEY
जो नहीं मुमकिन था, वो इंसान सब करता गया।
जो नहीं मुमकिन था, वो इंसान सब करता गया।
सत्य कुमार प्रेमी
हे प्रभु इतना देना की
हे प्रभु इतना देना की
विकास शुक्ल
यह जरूरी नहीं कि हर बात आपको सुकून ही पहुॅंचाए,
यह जरूरी नहीं कि हर बात आपको सुकून ही पहुॅंचाए,
Ajit Kumar "Karn"
बड़ी अजब है जिंदगी,
बड़ी अजब है जिंदगी,
sushil sarna
तुम क्या जानो किस दौर से गुज़र रहा हूँ - डी. के. निवातिया
तुम क्या जानो किस दौर से गुज़र रहा हूँ - डी. के. निवातिया
डी. के. निवातिया
!! फूलों की व्यथा !!
!! फूलों की व्यथा !!
Chunnu Lal Gupta
चैत्र प्रतिपदा फिर आई है, वसुधा फूली नही समाई है ।
चैत्र प्रतिपदा फिर आई है, वसुधा फूली नही समाई है ।
विवेक दुबे "निश्चल"
बुलन्दियों को पाने की ख्वाहिश तो बहुत थी लेकिन कुछ अपनो को औ
बुलन्दियों को पाने की ख्वाहिश तो बहुत थी लेकिन कुछ अपनो को औ
jogendar Singh
GM
GM
*प्रणय प्रभात*
कुछ बीते हुए पल -बीते हुए लोग जब कुछ बीती बातें
कुछ बीते हुए पल -बीते हुए लोग जब कुछ बीती बातें
Atul "Krishn"
रमन्ते सर्वत्र इति रामः
रमन्ते सर्वत्र इति रामः
मनोज कर्ण
प्रेम..
प्रेम..
हिमांशु Kulshrestha
बस थोड़ा सा ताप चाहिए
बस थोड़ा सा ताप चाहिए
Anil Kumar Mishra
सावन का मेला
सावन का मेला
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
शायद खोना अच्छा है,
शायद खोना अच्छा है,
पूर्वार्थ
Loading...