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10 Mar 2019 · 1 min read

काश अपनी भी कोई सनम होती

उसे जान देकर भी निभाता अगर ऐसी कोई कसम होती
काश अपनी भी कोई सनम होती

या कांच समझ कर तोड़ देती या फूल समझकर नाजो मे रखती मेरे दिल को
चाहे रहम दिल चाहे बेरहम होती

यूं तन्हा वीरान जिंदगी तो नहीं गुजरती रेगिस्तान की तरह
भले ही वह जख्म या मरहम होती

किसकी जीद है की मिले तो जन्नत की हूर ही मिले
चांद सी खूबसूरत या चांद से थोड़ा कम होती

किसी का चेहरा नहीं उसकी आंखें बयां करती है उसका दर्द
लिख देता प्यार उसकी जिंदगी में जो मेरे पास खुदा की कलम होती

किसी का दो पल का मुस्कुराना कितना सुकून दे सकता है उन्हें मालूम ही नहीं
उनकी चाहत हक़ीक़त नहीं भी तो वहम होती

क्या यूं भी कोई दुआ कर सकता है अपने लिए हरी
वह बेवफा सही मेरी ही हर जन्म होती

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