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5 Mar 2019 · 1 min read

प्रतिबिम्ब

आईने के इस शहर में
हर चेहरा अपना सा लगता हैं

मैं रूखा रूखा तो
सब रूखे रूखे
मैं खुशियों का सागर तो
सब मौजी लहरें सी लगती है

मैं कपटी तो सब कपटी
मैं दानवीर तो सब कर्ण से लगते है
आस पास के कोई और नही
मेरा ही प्रतिबिम्ब लगते है….

प्रो. दिनेश गुप्ता

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