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14 Feb 2019 · 1 min read

गज़ल :-- हुस्न तेरा जो कातिलाना है ।

गज़ल :– हुस्न तेरा जो कातिलाना है ।*
काफिया :– आना
रदीफ़ :– है
✍? अनुज तिवारी “इंदवार”
बहर :–
ये मुलाक़ात इक बहाना है
2122—1212—22

मतला
ख्वाबों का इक महल बनाना है ।
प्यार ही प्यार से सजाना है ।
हुस्न ए मतला
हुस्न तेरा जो कातिलाना है ।
ये मगर ख़ाक हो के जाना है ।
शेर
तेरी जुल्फों के ये घने साये ।
दर्दे-दिल का यहीं ठिकाना है ।

सच यही आज सोचता होगा ।
झूठ की शाख को गिराना है ।

बात दिल की जुबां पे आने दो ।
आज़ मौसम भी आशिकाना है ।

तेरी होठों को छू के जो निकले ।
अब वही गीत गुनगुनाना है ।

मैकदे की मुझे ज़रूरत क्या ।
हुस्न तेरा शराबखाना है ।

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