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13 Feb 2019 · 1 min read

कविता- जमीं के चांद -सरदानन्द राजली

? ज़मीं के चांद?
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ऐ-चांद आज खुद पर गुरूर मत करना।
आज गली-गली नहीं,
घर-घर चांद निकलने वाले हैं।
जो पीटते हैं,पत्नियों को,
शराबी भी हैं।
बहुतों ने कर रखी है,
चांद सी पत्नी-बच्चों की जिंदगी बर्बाद।
आज उन्हीं की लम्बी उम्र,
सात जन्मों की कामना की जाती है।
वाह!
गजब है रे गजब।
बस!
मैं फिर यही दोहराता हूं।
तुम मगरूर मत होना।
आज देखना तुम भी,
सुहागिनों की तरह उन चांदों को।
जो उनके जीवन भर की चमक छीन लेते हैं।
जिंदगी में अंधेरा ही अंधेरा पैदा कर देते हैं।
हर साल इसी तरह एक दिन चांद बनकर,
खुश हो जाते हैं,
ज़मीं के चांद।

सरदानन्द राजली© 9416319388

सरदानन्द राजली
गांव राजली
तह. बरवाला
जिला हिसार
हरियाणा-125121
मो.न.-9416319388
ई मेल- sardanandrajli@gmail.com

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